Friday, September 23, 2016

New Delhi: Press Trust of India (PTI) is India’s premier news agency, having a reach as vast as the Indian Railways. It employs more than 400 journalists and 500 stringers to cover almost every district and small town in India. Collectively, they put out more than 2,000 stories and 200 photographs a day to feed the expansive appetite of the diverse subscribers, who include the mainstream media, the specialised presses, research groups, companies, and government and non-governmental organisations.



PTI correspondents are also based in leading capitals and important business and administrative centres around the world. It also has exchange arrangements with several foreign news agencies to magnify its global news footprint. Currently, PTI commands 90 per cent of new agency market share in India.

PTI was registered in 1947 and started functioning in 1949. Today,  PTI can well and truly take pride in the legacy of its work, and in its contribution towards the building of a free and fair Press in India.

PTI invites applications for the following positions :-

 

Senior Copy Editors for National Desk in New Delhi                  

At least 6 years experience in mainline English media in editing and handling news desk operations. Age limit 30 years.     

Journalists for Films & Life style team in New Delhi                  

At least 3 years experience in mainline English media. Age limit 27 years.    

Copy Editors for Hindi service in New Delhi

At least 5 years experience in mainline Hindi news organizations. Age limit 30 years.

Reporter (for Chennai)

Candidates should have a minimum of 4 years reporting experience in mainline journalism. Age limit 30 years.

Minimum Educational Qualifications for all posts:-

 

Graduate with 50% marks. Those with degree/diploma in journalism will be preferred.

How to Apply:-

 

Download job application forms from http://www.ptinews.com/aboutpti/jobs.aspx. Filled up applications should be e-mailed highlighting ‘Post Applied for’ to hrm@pti.in or sent by post to Deputy General Manager (Administration), Press Trust of India, 4, Parliament Street, New Delhi-110001 before September 30, 2016.

Monday, September 19, 2016


जम्मू कश्मीर के उरी में भारतीय सेना के कैंप पर हुए हमले से पूरा देश गुस्से में है। इस हमले में भारतीय सेना के 17 जवान शहीद हुए हैं और 30 जवान घायल हुए हैं। यह सुन आप भी चुप नहीं बैठे होंगे। बैठ भी कैसे सकेंगे। यह भारतीय सेना पर जो हमला है।

इस हमले के बाद सोशल मीडिया पर पाकिस्तान विरोधी संदेशों की बाढ़ सी आई है । लोगों ने सोशल मीडिया पर कई कविताएं, फोटो, वीडियो शेयर किए हैं। जो भारतीय जवानों को सलाम करते हैं।  इसी बीच हिमाचल पुलिस के एक जवान का वीडियो भी वायरल हो रहा है, ये वीडियो सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया जा रहा है।  जिसमें मनोज ठाकुर पाकिस्तान को चुनौती देता हुआ कविता बोल रहा है।

वीडियो में 1965, 71, 99 के युद्धों का भी जिक्र किया गया है। इसमे पाक को चेताया है कि यदि अब जंग होगी तो कश्मीर तो होगा लेकिन पाकिस्तान नहीं होगा। पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा है कि हमसे टकराने की हिम्मत नहीं करना वरना विश्व के मानचित्र पर पाकिस्तान का नामो निशान नहीं होगा। कश्मीर तो होगा लेकिन पाकिस्तान नहीं होगा।

जम्मू कश्मीर के उरी में भारतीय सेना के कैंप पर आतंकवादी हमला कोई भी हिंदुस्तानी कतई सहन नहीं कर सकता। इस हमले को हमे आतंकवादी हमले की नजर से तो कतई नहीं देखना चाहिए, यह सीधे तौर पर जंग है। जो पाकिस्तान पिछले काफी समय से भारतीय सेना के ठिकानों पर हमला कर साबित कर रहा है। अभी पठानकोट एयरबेस पर हमले के जख्म भरे ही नहीं थे उतने में पाकिस्तान ने उरी में सेना के कैंप पर हमला कर नए जख्म दे दिए हैं।

बॉक्सर विजेंद्र सिंह का ट्वीट पढ़ कर अब मैं भी उनकी इस बात से सहमत हूं कि अब जब पाकिस्तान ने जंग का रास्ता चुन ही लिया है तो फिर क्यों नहीं?
अब बहुत हुआ, आखिर कब तक हमारे जवान शहादत देते रहेंगे। बस अब और नहीं, अब हमे किसी निष्कर्ष पर पहुंचना होगा। वो चाहे राजनीतिक तरीके से हो या किसी ओर तरीके से, उससे फर्क नहीं पड़ता। अब समय आ गया है कि इस घटना का मुंहतोड़ जवाब दिया जाए। ऐसा जवाब जिसके बाद पाकिस्तान कभी आंख उठाकर भारत की तरफ ना देख सके।

कश्मीर तो होगा लेकिन पाकिस्तान नहीं होगा

हम डरते नहीं एटम बम्ब, विस्फोटक जलपोतो से
हम डरते है ताशकंद और शिमला जैसे समझोतों से
सियार भेडिए से डर सकती सिंहो की औलाद नहीं
भरत वंश के इस पानी की है तुमको पहचान नहीं
भीख में लेकर एटम बम्ब को तुम किस बात पे फूल गए
६५, ७१ और ९९ के युधो को शायद तुम भूल गए
तुम याद करो खेतरपाल ने पेटन टैंक जला डाला
गुरु गोबिंद के बाज शेखो ने अमरीकी जेट उड़ा डाला
तुम याद करो गाजी का बेडा एक झटके में ही डूबा दिया
ढाका के जनरल नियाजी को दुद्ध छटी को पिला दिया
तुम याद करो उन ९०००० बंदी पाक जवानो को
तुम याद करो शिमला समझोता और भारत के एहसानों को
पाकिस्तान ये कान खोलकर सुन ले
की अबके जंग छिड़ी तो सुन ले
नामो निशान नहीं होगा
कश्मीर तो होगा लेकिन पाकिस्तान नहीं होगा


लाल कर दिया तुमने लहू से श्रीनगर की घाटी को
किस गफलत में छेड़ रहे तुम सोई हल्दी घाटी को
जहर पिला कर मजहब का इन कश्मीरी परवानो को
भय और लालच दिखला कर भेज रहे तुम नादानों को
खुले पर्शिक्षण है खुले शस्त्र है, खुली हुई नादानी है
सारी दुनिया जान चुकी ये हरकत पाकिस्तानी है
बहुत हो चुकी मक्कारी, बस बहुत हो चूका हस्ताक्षेप
समझा दो उनका वरना भभक उठे गा पूरा देश
हिन्दू अगर हो गया खड़ा तो त्राहि त्राहि मच जाएगी
पाकिस्तान के हर कोने में महाप्रलय आजायेगी
क्या होगा अंजाम तुम्हे इसका अनुमान नहीं होगा
कश्मीर तो होगा लेकिन पाकिस्तान नहीं होगा

ये मिसाइल ये एटम बम्ब पर हिम्मत कोन दिखायगा
इन्हें चलाने जन्नत से क्या बाप तुम्हारा आएगा
अबकी चिंता मत कर चहरे का खोल बदल देंगे
इतिहास की क्या हस्ती है सारा भूगोल बदल देंगे
धारा हर मोड़ बदल कर लाहौर से निकलेगी गंगा
इस्लामाबाद की छाती पर लहराएगा तिरंगा
रावलपिंडी और करांची तक सब गारत हो जाएगा
सिन्धु नदी के आर पार सब भारत हो जाएगा
फिर सदियों सदियों तक जिन्नाह जैसा शेतान नहीं होगा
कश्मीर तो होगा लेकिन पाकिस्तान नहीं होगा

भारत माता की जय

जय हिंद।


#UriAttack #IndianArmy

Tuesday, September 13, 2016

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव रहे बुतरस घाली ने करीब तीन दशक पहले यह कहा था कि 'अगर कभी तीसरा विश्व युद्ध लड़ा गया तो वो पानी के लिए लड़ा जाएगा।' लेकिन इस विश्व युद्ध से पहले फिलहाल भारत में प्रदेश युद्ध जैसी स्थिति बन गई है। कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच पानी के बंटवारे को लेकर जिस तरह की स्थिति बनी हुई है इससे यह साफ जाहिर होता है कि तीसरा युद्ध पानी के लिए ही हो सकता है।

आपने कई शहरों में पानी के लिए सुबह-शाम के झगड़े तो देखें ही होंगे, पर इस बार यह झगड़ा दो राज्यों के बीच हो रहा है। यह झगड़ा अब खतरनाक रूप धारण कर चुका है। कर्नाटक और तमिलनाडु की जीवनरेखा मानी जाने वाली कावेरी नदी के जल को लेकर दोनों राज्यों में एक बार फिर विवाद गहरा गया है। दरअसल तमिलनाडु में इस साल कम बारिश होने के कारण पानी की जबरदस्त किल्लत है। कर्नाटक को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के लिए 12 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने के निर्देश दिए थे। लेकिन इन निर्देशों से लोग आगबबुला हो गए और कर्नाटक के लोग सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विरोध में सड़कों पर उतर आए और पानी न छोड़ने के लिए 20 से ज्यादा बसों को फूंक दिया गया। वहीं दूसरी ओर चेन्नई में भी होटल पर पेट्रोल बम से हमले किए गए। दोनों राज्यों में हो रही इस तरह की हिंसक घटनाओं ने पानी के लिए होने वाले तीसरे विश्व युद्ध की आग सुलगा दी है। अब स्थिति यह हो गई है कि देश के प्रधानमंत्री तक को इस मुद्दे पर लोगों से संवेदनशीलता की अपील करनी पड़ी।




यह स्थिति तब बनी है जब देश के कुछ हिस्सों में मूसलाधार बारिश हुई है। कई राज्यों में तो बाढ़ भी आ गई। अब जब ऐसे समय में भी पानी की कमी हो रही है तो फिर यह चिंतन करने वाली बात है कि जब बारिश नहीं होगी तो वह स्थिति कितनी भयावह होगी।

यह विवाद कोई नया नहीं है, दशकों से चला आ रहा यह विवाद अभी तक सुलझ नहीं सका है। ये सारा मुद्दा ही पानी को लेकर है लेकिन तब भी लोग बसों को आग लगा रहे हैं, अर भाई बसों की इस आग को बुझाने के लिए भी तो पानी की जरूरत पड़ेगी। यह क्यों नहीं समझते। अगर इसी तरह पानी को लेकर आपस में लड़तेमरते रहे तो कोई ताज्जुब नहीं कि पानी को लेकर होने वाले तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत हमारे देश से हो। पानी की कमी एक वैश्विक समस्या का रूप ले चुकी है। दुनिया का हर देश इस समस्या से जूझ रहा है। लेकिन इस तरह की झड़प हमारे यहाँ ज्यादा दिखती हैं। कोई समाधान पर ध्यान नहीं दे रहा, बावजूद इसके हम पानी बचाने के बजाये एक दुसरे का खून बहाने में जुटे हैं।

जल की तुलना जीवन से की गई है इसलिए कहा गया है 'जल ही जीवन है'। पानी के बिना हमारा जीवित रहना असंभव है, बिना खाए इन्सान कुछ दिनों तक तो जिंदा रह सकता है, मगर पानी के बिना कुछ दिन भी जीवित नहीं रह जा सकता। आधुनिकता के इस दौर में भी गंदा पानी पीना मजबूरी है। भले ही इससे जल जनित रोग हो जाएं और जान पर बन आए लेकिन प्यास तो बुझानी ही होगी।

धरती पर सबसे ज्यादा पानी होने की वजह से इसे ब्लू प्लैनेट कहा जाता है। धरती पर वैसे तो पानी की कमी नहीं है, पर जब स्वच्छ जल की बात आती है तो कमी महसूस हो जाती है। पृथ्वी पर करीब 71 प्रतिशत हिस्से पर पानी है और करीब 29 फीसदी हिस्से पर भूमि। परंतु पृथ्वी पर उपलब्ध पानी का करीब 97 प्रतिशत खारा है, जिसे की सिंचाई और पीने के लिए भी प्रयोग में नहीं लाया जा सकता। केवल 3 फीसदी पानी ही पानी योग्य है, उसमें भी 2 फीसदी पानी ग्लेशियरों या पहाड़ों में जमा है।

अब सबसे जरूरी है कि बारिश के पानी को सहेजा जाए जो कि ज्यादा मुश्किल नहीं है। छोटे-छोटे प्रयासों से यह संभव है। जैसे घरों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया जाए, सिंचाई के लिए ड्रिप एरिगेशन का प्रयोग किया जाए, पानी को भूगर्भ तक पहुंचाने के लिए गहरे गड्ढे बनाए जाए।  छोटे-छोटे तालाब, बांध, नाले, भी जनभागीदारी से हर मोहल्ले, गांव और कस्बों में तैयार किए जा सकते हैं, जो भूर्गभीय जल संरक्षण में अहम भूमिका निभा सकते हैं। छोटी-छोटी बातों पर भी यदि ध्यान दें तो भी हम पानी की खपत को कम कर सकेंगे।

स्वच्छ पेयजल निश्चित रूप से एक बड़ी चुनौती है और इसके लिए सरकार का मुंह देखना खुद के साथ बेमानी होगी। हर किसी को इसके लिए अपने स्तर पर एक-एक आहुति देनी होगी, तभी हम पानी के लिए तीसरे विश्वयुद्ध की भयावहता को न केवल टाल पाएंगे, बल्कि जल ही जीवन का नारा भी सार्थक कर पाएंगे।

Thursday, September 1, 2016

सुनो, सुनो, सुनो,
हिमाचल के बेरोजगारों को कमाई का सुनहरा अवसर। एक बंदर मारने पर मिलेगा 300 रुपए का नगद इनाम, ये मैं नहीं कह रहा प्रदेश सरकार का है फरमान, किसी तरह की न्यूनतम योग्यता नहीं, बस तीर निशाने पर लगना चाहिए। जल्द कीजिए ऑफर केवल सीमित समय के लिए।



हिमाचल प्रदेश में बंदरों का आतंक इस कदर बढ़ गया है कि अब प्रदेश सरकार को बंपर ऑफर निकालना पड़ा। बंपर ऑफर भी ऐसा जिसमें एक बंदर को मारने पर आपको 300 का रुपए का इनाम मिलेगा। अभी तक आपने बंपर ऑफरों के बारे में सुना तो होगा पर वे ऑफर या तो टेलिकाम कंपनियों ने दिए होंगे या फिर ई कॉमर्स साइट्स ने। लेकिन इस बार आपको हिमाचल सरकार भी बंपर ऑफर दे रही है। आपको बस करना इतना है कि प्रदेश की 38 तहसीलों और शिमला शहर में बंदरों को मारना होगा। जल्दी कीजिए क्योंकि यह ऑफर केवल सीमित समय तक है, क्योंकि यह ऑफर केवल 14 सितंबर तक ही है। बंदरों को वर्मिन घोषित करने की अवधि 14 सितंबर को हो पूरी हो रही है। बहरहाल ऑफर की अवधि बढ़ाने के लिए सरकार ने इसकी एक्सटेंशन के लिए केंद्र सरकार को एक पत्र भेज दिया है। जिसमें बंदर मारने की डेट को 6 महीने बढ़ाने की मांग की गई है।

रोजगार का सुनहरा अवसर

प्रदेश के वन मंत्री ने यह निर्णय जंगलों के बाहर बंदरों की बड़ी जमात पर अंकुश लगाने के लिए लिया है, लेकिन सरकार का यह फैसला बेरोजगारी पर भी अंकुश लगाने में कारगर सिद्ध हो सकता है। इसे कहते हैं एक तीर से दो निशानें। वन मंत्री के इस निर्णय से प्रदेश के बेरोजगारों के लिए कमाई का सुनहरा अवसर मिलने के आसार हैं। इस ऑफर के लिए कोई न्यूनतम योग्यता नहीं, बस तीर  निशाने पर लगना चाहिए।

शहर से लेकर गांव तक त्राहीमाम

हिमाचल में करीब सवा तीन लाख उत्पादी बंदर है। जो शहर से लेकर गांव तक लोगों को परेशान कर रहे हैं। दरअसल सिमटते जंगलों के चलते बंदर अब आबादी क्षेत्र का रूख करने लगे हैं। बंदरों की संख्या राज्यभर में तेजी से बढ़ रही है, जिसके चलते वन विभाग ने यह फैसला लिया है। कुछ क्षेत्रों में बंदरों का आतंक इतना बढ़ गया है कि किसानों ने खेती से मुंह मोड़ लिया है। शिमला, सोलन, सिरमौर और मंडी की कई पंचायतों में तो जमीन तक बंजर हो गई है। प्रति वर्ष उत्पादी बंदर करोड़ों रुपए की फसल चट कर रहे हैं। ऐसे में किसानों और बागवानों को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। वैसे तो यह काम वन विभाग का होता है कि जंगली जानवरों के आतंक से लोगों को निजात दिलाए, पर विभाग ने अपनी जिम्मवारी से मुंह मोड़ दिया है। अब वन विभाग बेरोजगारों के कंधों पर से बंदूक चलाने की कोशिश कर रहा है।

कौन समझेगा बंदरों की व्यथा

जंगलों पर तो मनुष्य ने अपना अधिकार जमा लिया है, और जो वहां के रहने वाले हैं उन्हें वहां से खदेड़ दिया है। ऐसे में अगर वो गांव या शहरों की ओर नहीं आएंगे तो कहां जाएंगे? चांद पर तो अभी जीवन संभव नहीं हुआ है। ऐसे में चांद पर जाने की तो वो सोच भी नहीं सकते। अरे भाई बंदरों को भी तो जीने के लिए कुछ खाना पड़ता है। ऐसे में किसानों की फसलें नहीं खाएंगे तो क्या खाएंगे, जंगल तो पहले की सिमट चुके हैं।

सकते में बंदर कम्युनिटी

सरकार के इस फरमान के बाद बंदर कम्युनिटी भी सकते में आ गई है। जैसे ही बंदरों को इस बात की भनक लगी तो बंदरों ने भी अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी। बंदरों को समझ आ गया है कि सरकार से इस समस्या का हल नहीं निकलने वाला। और उन्हें विश्वास भी है कि सरकार इस समस्या का हल भी नहीं निकाल सकेगी। अब उम्मीद है कि बंदर कम्युनिटी ही इस समस्या का उचित समाधान निकाल पाए। या तो बंदर वापस जंगलों की ओर चलें जाए या फिर खाना-पीना छोड़ दें। इस पर निर्णय होना बाकी है।

धर्म संकट में किसान

वानरों को भगवान का दर्जा देने वाले हिमाचल के भोले-भाले लोग क्या इन वानरों की जान ले पाएंगे यह देखने वाली बात होगी। ऐसे में देखना यह होगा क्या किसानों को इस ऑफर का फायदा मिल पाएगा या नहीं। या फिर यह ऑफर भी समाप्त हो जाएगा और किसानों की यह समस्या जस की तस बनी रहेगी। लेकिन यह बात गौर करने वाली है की जब से केंद्र ने यह अनुमति दी है, तब से किसी भी क्षेत्र में कोई भी व्यक्ति बंदरों को मारने के लिए आगे नहीं आया है। ऐसे में यह ऑफर कितना कारगर सिद्ध होता है यह आने वाला समय ही बताएगा।

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