Tuesday, May 20, 2014

इन दिनों इंटरनेट नाम की एक बीमारी ने मुझे खासा परेशान कर रखा है। दरअसल, आज के दौर मे, इस बीमारी का शिकार मै ही नही बल्कि लगभग पूरी दुनिया हो गयी है। ऐसा लगता है जैसे पूरा जीवन इंटरनेट का गुलाम बन गया है। इस बीमारी ने तो मेरे प्रशिक्षक को भी अपनी चपेट मे ले लिया। किसी भी शंका का उनके पास अब एक ही समाधान होता है, इंटरनेट।

वैसे बात भी बिल्कुल सही है, आज जिस हद तक इंटरनेट हमारे जीवन मे घुल चुका है उससे हमारी सोच का दायरा बिलकुल सीमित हो चुका है। हर सवाल का बस एक ही जवाब होता है  इंटरनेट। बस एक क्लिक करो और पूरा ब्योरा सामने आ जाता है। हमारा खाना, पीना, काम करना, यहाँ तक की हमारा जीना भी इंटरनेट पर निर्भर हो गया है। लेकिन तकनीक का ये विकास, हमारे व्यक्तिगत विकास मे बाधक बनता जा रहा है। वैसे तो इंटरनेट से हम पूरी दुनिया से जुड़े रहते है पर हमारी अपनी जिंदगी मे क्या हो रहा है, ये सोचने का हमे वख्त ही नही मिलता। कहने को तो हम पूरी दुनिया के संपर्क मे  रहते है पर हमारे पड़ोस मे कौन रहता है, ये हमे पता ही नहीं होता।

खैर, क़ुसूर हमारा नही है, कुसूर है तकनीक का, इंटरनेट का। लेकिन इसी तकनीक का एक और चेहरा भी है। इसी की बदौलत आज का सामाजिक विकास अपने मौजूदा मुकाम तक पहुंचा है। बात शिक्षा की हो या सुरक्षा की, समाज की हो या अपनी निजी जिंदगी की। तकनीक ने और इंटरनेट ने अपनी अहमियत का हमेशा एहसास कराया है और इसी एहसास के कारण मै इंटरनेट को कोसने या इस पर टिप्पणी करने मे झिझक रहा हूँ। काफी सोच-विचार के बाद, मै इस निष्कर्ष पर पहुंचा, कि जो भी हो, इंटरनेट के बिना जीना, आज के दौर मे पानी या हवा के बिना जीने से भी ज्यादा मुश्किल है क्योंकि इंटरनेट के फ़ायदों ने इसके नुकसान को अपने अंदर समाहित कर लिया है और हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बनने मे इसने काफी हद तक सफलता हासिल कर ली है।

Guest Blogger: Dharam Prakash

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